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Happy Guru Purnima 2020 |
Guru Purnima 2020: गुरु-पूर्णिमा | क्यों मानते है गुरु पूर्णिमा जानिए इसकी महत्ता और पूजा विधि|
नमस्कार दोस्तों,
आज के इस लेख में हम
जानेंगे की गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है और गुरु
पूर्णिमा की पूजा विधि के बारे में भी जानेंगे|
प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में गुरुओं का बहुत सम्मान किया जाता है| भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान बहुत ऊँचा है| भारतवर्ष में गुरु को सर्वोपरि मन जाता है|
गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है| 'गु' और 'रु' से। ‘गु’ का मतलब होता है अंधकार और ‘रु’ का मतलब होता है अंधकार का मारक| यानि गुरु का मतलब होता है कोई भी व्यक्ति जो हमें अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाता है उसे गुरु कहते है| गुरु की महिमा सबसे ज्यादा 'हनुमान चालीसा' में मिलती है। हनुमान चालीसा के अंत में भक्त कहता है कि 'कृपा करौ गुरुदेव की नाईं।' यानी कि मुझ पर गुरु की तरह कृपा करो।
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हमारी पौराणिक कथाओं में गुरु शिष्य के रिश्ते को बहुत महत्ता दी गयी है और यह भी दर्शाया गया है की शिष्य गुरु को गुरु दक्षिणा देने के लिए किस हद तक जा सकता है| हमने गुरु शिष्यों के सम्बन्ध में अनेक कहानिया भी सुनी है जैसे की सांदीपनि ऋषि, एकलव्य और कई अन्य कहानिया| भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवन के समान मन जाता है| गुरु को श्री ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूजनीय मन गया है|
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:|
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:||
इसका भावार्थ है की गुरु ही ब्रह्मा है जो हमारा सृजन करते है गुरु ही विष्णु है जो हमारा लालन-पालन करते है और गुरु ही महेश्वर अर्थात शिव है जो हमारे दुर्गुणों का संहार करते है| गुरु तो परम ब्रह्म के समान होते है जो कि सृष्टि के रचियेता है और सभी देवों में श्रेष्ठ हैं| मैं उन गुरु को प्रणाम करता हूँ|
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा अषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा मनाया जाता हैं| गुरु पूर्णिमा पूरे भारतवर्ष में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाया है| यह त्यौहार शिष्य अपने गुरु, अपने शिक्षक या फिर अपने उपदेशक के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए मानते है|
जैसा की संत कबीर जी ने कहा है
“गुरु के सुमिरन मात्र से, नष्ट विघ्न अनंत |
तासे सर्व आरम्भ में, ध्यावत है सब सन्त ||”
जिसका अर्थ है: अपने गुरु को याद करने मात्र से ही आप सभी बाधाओं को दूर कर पाएँगे| यही कारण है कि किसी भी चीज कि शुरुआत करने से पहले गुरु को याद किया जाता है|
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गुरु पूर्णिमा का महत्त्व
गुरु पूर्णिमा का दिन महर्षि वेदव्यास जी को समर्पित हैं| इस दिन महाभारत के रचियेता महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था| महर्षि वेदव्यास जी को कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता हैं| महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत के साथ-साथ चारों वेदों कि भी रचना कि थी| इसी कारण उनका नाम वेद व्यास भी था| महर्षि के सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं|
गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व 5 जुलाई को मनाया जायेगा| गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त 4 जुलाई शनिवार प्रातः 11 बजकर 33 मिनट से प्रारम्भ होगा और 5 जुलाई रविवार को प्रातः काल 10 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगा|
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
हिन्दू धर्म में गुरु को भगवन से भी अधिक दर्जा दिया गया हैं| क्युकी वो गुरु ही हैं जो हमारे अंदर के अंधकार का नाश करने का रास्ता दिखते हैं और भगवन तक पहुंचने की रह भी गुरु ही दिखता हैं| गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद आवश्य लेना चाहिए|
जिस भाव से आप ईश्वर की पूजा अर्चना करते हैं उसी भाव से आज अपने गुरु जी का आभार व्यक्त करने के लिए पूजा की तैयारी करें| अगर आपके गुरु इस दुनिया में नहीं हैं तो आप महर्षि वेदव्यास जी की भी पूजा कर सकते हैं|
प्रातकाल उठकर घर की सफाई, नित्य कर्म एवं स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें| फिर अपने गुरूजी को टिका लगाए उन्हें फूलों की माला पहनायें और मिठाई से उनको भोग लगाए इसके बाद उनका आशीर्वाद लें और उन्हें भेंट दे|
यदि आपके गुरु इस दुनिया में नहीं हैं और आप महर्षि वेद व्यास जी की पूजा करना चाहते हैं तो इसकी विधि यह है
प्रातकाल उठकर नित्य कर्म एवं स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें| इसके बाद किसी एकांत स्थान पर चौकी के ऊपर सफ़ेद या फिर केसरिये रंग के वस्त्र को उस बिछा दें| वस्त्र बिछाने के बाद आप इस पर गेंहू के आटे से चोक बना लें और इसके बाद वेद व्यास जी की मूर्ति रखें| अगर आपके पर वेद व्यास जी की मूर्ति नहीं हो तो आप कोई धार्मिक पुस्तक रख कर उसकी भी पूजा कर सकते हैं|
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में ही क्यों आती हैं|
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु आरम्भ में इसलिए आती हैं क्योंकि यह मौसम काफी उत्तम मन जाता हैं| इस मौसम में न तो ज्यादा गर्मी होती हैं और न ही ज्यादा सर्दी| इस मौसम को अध्यन के लिए उपयुक्त माने गए हैं| प्राचीन काल में साधु-संत, ऋषि मुनि एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा करते थे| इस समय के बाद वर्षा में तेजी आ जाती हैं| इसलिए इस दिन से चार महीने तक एक ही स्थान पर रहकर साधु-संत अपने ज्ञान को बांटते थे|
आवश्यक सूचना: दोस्तों जैसा की आप सब लोग जानते ही होंगे की हमारे देश में कोरोना नाम की बीमारी बहुत तेजी से फ़ैल रही है तो में आशा करता हूँ की आप स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें और अपने जीवन की आकांशाओ को पूरा कर सके|
दोस्तों अगर हो सके तो इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो के साथ शेयर करे|
धन्यवाद|
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