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Yamraj and Nachiketa Story in Hindi

यमराज और नचिकेता की कहानी - Nachiketa Story in Hindi | Nachiketa ki Kahani

Yamraj and Nachiketa Story| Yamraj and Nachiketa Samvad in Hindi: नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम यमराज और नचिकेता की कहानी के बारे में जानेंगे| इस लेख में हम पढ़ेंगे की कैसे एक बालक अतिथि बनकर महात्मा यमराज के द्वार पर पहुंचा और क्यों यमराज ने नचिकेता को दिए तीन वरदान और वो वरदान क्या थें! तो चलिए पढ़ते है यमराज और नचिकेता की कहानी हिंदी में....



अतिथि देवो भव!

अतिथि शब्द का अर्थ है अ + तिथि अर्थात जो बिना पूर्व सूचना के किसी भी समय तथा किसी भी दिन हमसे मिलने के लिए हमारे घर पर आ सकता हैं।  हमारी भारतीय संस्कृति में ऐसे घर पर आने वाले व्यक्तियों को देवता के समान समझा जाता है तथा उनकी हर प्रकार से सेवा करके, उन्हें संतुष्ट किया जाता है। कठोपनिषद में इसकी एक बड़ी सुंदर कथा है।  

महर्षि अरुण के पुत्र उद्दालक ऋषि ने विश्वजित नाम का एक यज्ञ किया।  इसमें अपना सर्वस्व दान कर दिया जाता है।  ऋषि उद्दालक ने भी यही किया| उन्होंने भी उनके पास जो भी धन तथा गौ इत्यादि पशु थे, वे सब दान में दे डाले| 


जब ऋषि उद्दालक ने नचिकेता को मृत्यु को दान में दिया!

ऋषि का एक पुत्र था जिसका नाम नचिकेता था| वह छोटी आयु में ही बहुत ही विचारवान, श्रद्धालु तथा गंभीर बालक था| उसने देखा कि जो गायें दान के लिए लाई जा रही थीं उनमें अनेक बूढ़ी थीं| वे न तो घास खा सकती थीं और न पानी ही पी सकती थीं| वे दूध भी बिल्कुल नहीं देती थीं| उसने सोचा ऐसी गायें तो जिसके पास भी पहुचेंगी उसके लिए बोझ ही बन जाएँगी| पिताजी को इस प्रकार के दान से तो पाप लगेगा| वे ऐसे लोकों में जाएँगे जहां उन्हें सुख प्राप्त ही नहीं होगा| 

इस पापपूर्ण कार्य को काम करने का कोई उपाय ढूंढना चाहिए तथा पिताजी को इससे सावधान करना चाहिए| वह अपने पिता के पास पंहुचा और उन्हें इस गलत काम के प्रति चेताया, लेकिन नचिकेता के पिता दान लेने वाले व्यक्तियों की भीड़ से ऐसे घिरे थे कि उन्होंने अपने बेटे की बात पर ध्यान ही नहीं दिया| तब नचिकेता ने सोचा कि इससे तो अच्छा है कि पिताजी मुझे भी दान कर दें क्योंकि मैं भी तो उनकी ही संपत्ति कि समान हूँ| इससे उनका पाप काम हो जाएगा क्योंकि मैं जिसके पास भी दान में जाऊंगा, उसकी खूब सेवा करके उसे संतुष्ट रखूंगा| 

यह सब सोच विचार करने के बाद नचिकेता ने अपने पिता, ऋषि उद्दालक, से बार-बार पूछा की वे उसे किसको दान में दे रहे है| नचिकेता के एक ही प्रश्न को बार-बार पुछने से ऋषि उद्दालक परेशान हो गए और क्रोध में आकर उन्होंने कह दिया की, "मैं तुम्हे मृत्यु को दान में देता हूँ"| 

प्राय: ऐसा होता हैं कि जब कोई व्यक्ति किसी से बहुत तंग आ जाता हैं तो उसके मुख से क्रोध में बड़ी अनर्गल बातें निकल जाती हैं, जैसे 'मरता भी तो नहीं ', या ' मरे न मांझा ले ', इत्यादि| यही बात क्रोध में उद्दालक ऋषि के मुख से भी निकल गई| 
अब तो नचिकेता ने जो कुछ भी सोचा था वो उलट गया, उसका विचार तो यह था कि दुःख देने वाली अपने बिना काम की वस्तुओं को दान के नाम पर देना तो अपनी मुसीबत को टालना हैं तथा जो दान ले रहा हैं, उसके गले मुसीबत को मढ़ना हैं तथा उसे धोखा देना हैं| आप उन्हें और क्रोध आ गया और ऐसी बात कह बैठे जो सामान्य स्थिति में होने पर कभी भी नहीं कहते| फिर भी वह अपने पिता की बात को पूरी करने के लिए यमराज के घर चल दिया|


नचिकेता चले यमराज की ओर!

रास्ते में चलते समय नचिकेता सोचने लगा की 'पुत्र और शिष्य तीन प्रकार के होते हैं- एक तो वो जो अपने गुरु या पिता की इच्छा को बिना उनके कहे भांप लेते है और वह कार्य कर देते हैं, दूसरे प्रकार के वो होते हैं जो उनके आदेश मिलने पर फ़ौरन वह कार्य पूर्ण कर देते है और तीसरे प्रकार के वो होते है जिन्हें स्पष्ट रूप से आज्ञा देने पर भी वह काम को नहीं करते हैं|' ये तीनों शिष्य, उत्तम, मध्यम तथा अधम श्रेणी में आते हैं| नचिकेता सोचने लगा की मैं यदि उत्तम नहीं तो मध्यम श्रेणी में तो आता ही हूँ, अधम तो कभी भी नहीं| मैंने हमेशा ही अपने पिता की आज्ञा का पालन किया है, फिर पिता जी ने ऐसा क्यों कहा कि वे मुझे मृत्यु को  दान में दे रहे हैं|   

हो सकता है कि यमराज के किसी कार्य को पिताजी मेरे द्वारा पूरा करना चाहते हों| इसी प्रकार संकल्प-विकल्प करता वह यमराज के द्वार पर पहुँच गया| वहां जाकर उसे पता लगा कि यमराज तो घर पर नहीं हैं, वे कहीं गए हुए हैं| तब नचिकेता तीन दिन तक उनके घर पर ही बिना कुछ खाए-पिए भूखा-प्यासा यमराज कि प्रतीक्षा करता रहा|


जब नचिकेता यमराज के घर अतिथि बनकर पहुंचे!

तीन दिन पश्चात यमराज घर लोंटे| उनकी पत्नी ने उन्हें बताया कि एक ब्राह्मण बालक अतिथि के रूप में तीन दिन से बिना अन्न-जल ग्रहण किए उनकी प्रतीक्षा में अनशन किए बैठा है| जिस प्रकार भी हो आप उसे सेवा करके शांत कीजिये नहीं तो अब तक आपने जो अच्छे काम किए हैं, दूसरों की भलाई के लिए यज्ञ किए हैं, दान दिया है तथा कुए, तालाब, बगीचे इत्यादि बनवाए हैं सब व्यर्थ हो जाएँगे| उन अच्छे कार्यों का फल आपको प्राप्त नहीं होगा| तब यमराज जल लेकर नचिकेता के पास गए| उन्होंने अपनी मीठी वाणी से उसे नमस्कार करते हुए, उसके हाथ-पैर धुलवाए, एक शुद्ध एवं सुखद आसन पैर उसे बैठाया तथा भोजन आदि कराकर उससे घर पर न मिल पाने के लिए क्षमा मांगी तथा बोले, " हे ब्राह्मण अतिथि यदि किसी के घर आने पर घर का स्वामी न मिले और अतिथि को उसकी प्रतीक्षा में तीन दिन तक भूखा रहना पड़े, उस स्वामी से बढ़कर और दुर्भाग्यशाली व्यक्ति कौन होगा| उसके तो सारे पुण्य ही नष्ट हो जाएँगे| आप कृपा करके शांत हो जाइए| आप मेरे द्वार पर तीन रात्रि भूखे-प्यासे रहे हैं| इसके बदले में, मैं आपको तीन वरदान देता हूँ| आपकी जो भी इच्छा हो मांग लें, मैं उन्हें पूरा करूँगा|" नचिकेता यमराज की मीठी वाणी, उनका सदव्यवहार तथा उनकी सेवा से पूरी तरह संतुष्ट हो गया| उसने तीन वर यमराज से मांगने का निश्चय किया| 


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नचिकेता के तीन वर ये थे -

१. पहला, जब मैं आपके पास से लौटकर जाऊं तो मेरे पिता क्रोध रहित हो जाएँ तथा वे शांत चित से संतुष्ट होकर मुझसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करें| उन्हें मेरी और से आगे अपनी आयु से शेष दिनों में कोई चिंता न सताए|  वे नित्य सुखपूर्वक सो सकें|

यमराज ने 'तथास्तु' अर्थात 'ऐसा ही हो' कहा और बोले, "मेरी प्रेरणा से तुम्हारे पिता तुम्हें देखकर बहुत प्रसन्न होंगे| वे यह भूल जाएँगे कि तुम मृत्यु के फंदे से छूटकर वापस आए हो| उन्हें कभी कोई चिंता इस विषय में नहीं सताएगी तथा व आगे अपने जीवन में सुख-शांति पूर्वक रहेंगे|"

२. दूसरे वर में नचिकेता ने कहा, "मैंने ऐसा सुना हैं कि कोई ऐसा लोक है जहां सदा सुख ही सुख हैं, दुःख का नाम भी नहीं है| वहां भूख-प्यास जैसी कोई चीज नहीं है तथा न तो मनुष्य वहां बूढ़ा होता है और न मरता ही है| उसे स्वर्ग कहा जाता है| उसे प्राप्त करने के लिए जिस यज्ञ को किया जाता है, उसे आप जानते हैं| कृपा करके उस यज्ञ का पूरा ज्ञान मुझे देने का कष्ट करें|"

यमराज ने बड़ी प्रसन्नता से नचिकेता को उस यज्ञ का विस्तार से वर्णन किया| यज्ञ कुण्ड को कैसे बनाया जाए| कितनी ईंटे  किस प्रकार से लगाई जाएँ यज्ञ किस प्रकार किया जाए, कौन से मंत्र आदि बोले जाएँ| अंत में नचिकेता की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने उससे कहा कि जो कुछ उन्होंने बताया है उसे वह विस्तार के साथ उन्हें सुनाए| नचिकेता ने हू-ब-हू एक-एक शब्द उन्हें सुना दिया| 

इससे यमराज उसकी स्मरण शक्ति तथा योग्यता को देखकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उसे यह वरदान भी और दे डाला कि " आज से यह स्वर्ग कि प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की विधि नचिकेता के नाम से 'नचिकेत अग्नि' के रूप में संसार में प्रसिद्ध होगी|" उन्होंने अनेक प्रकार के यज्ञों का विधान भी नचिकेता को समझाया जिसे उन्होंने रत्नों की माला कहकर पुकारा|

३. अब नचिकेता ने तीसरा व मांगा जो अत्यंत गूढ़ था| उन्होंने यमराज से कहा, " जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो कुछ विद्वान् तो ऐसा कहते हैं कि मनुष्य के मरते ही सब कुछ समाप्त हो जाता है, कुछ नहीं रहता जैसे यह पेड़-पौधे, ये पशु-पक्षी एक दिन सूख जाते हैं, मर जाते हैं और गाल-सड़कर पृथ्वी में ही मिल जाते हैं, लेकिन दूसरे विद्वान यह कहते हैं कि केवल शरीर मरता है, इसके अंदर जो आत्मा रहती है, वह अमर है कभी नहीं मरती| जब वह निकल जाती है तभी शरीर मरता है| वह आत्मा शरीर से निकलकर अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नरक को प्राप्त होती है तथा पुनः जन्म लेती है, कर्मों के अनुसार शरीर धारण करती है और फिर पूर्वजन्मों में किए गए कर्मों का फल भोगती है तथा नए कर्म करती हैं| जब तक वह परमात्मा को नहीं प्राप्त कर लेती, इसी प्रकार जन्म ग्रहण करती रहती है और जन्म-मरण के चक्कर में फंसी रहती हैं| इन दोनों में क्या सत्य हैं  यह निश्चय करके आप मुझे बताइए?"


यमराज ने नचिकेता को समझाया जीवन और मृत्यु का अर्थ!

यह कथा अत्यंत प्राचीन काल की है, उस समय मनुष्य इन्हीं प्रश्नों में उलझा हुआ था कि मरने के पश्चात क्या होता है| महात्मा यमराज ने नचिकेता के विषय में यह जानने की कोशिश की कि नचिकेता वास्तव में इस प्रश्न के प्रति बहुत गंभीर हैं| वह सचमुच सच्चा जिज्ञासु है अर्थात गंभीरता के साथ जानना चाहता है या वैसे ही पूछ रहा हैं| 


यमराज ने ली नचिकेता की परीक्षा

यमराज बोले, "नचिकेता, इस प्रश्न को तुम मुझसे मत पूछो| यह बहुत कठिन प्रश्न है| पहले भी और बहुत से लोगो इस प्रश्न का उत्तर जानने में उलझे हुए हैं| यहाँ तक कि देवता भी इस प्रश्न को हल नहीं कर सकते हैं| इसको समझना और समझाना बहुत मुश्किल है | इसके बजाय कोई दूसरा वर मांग लो|"

परन्तु नचिकेता किसी प्रकार से भी राजी नहीं हुआ, कहने लगा, " इससे श्रेष्ठ और कोई दूसरा वर है ही नहीं और फिर आप जैसा विद्वान महात्मा जो इस प्रश्न का उत्तर जानता हो, दूसरा मुझे कहां मिलेगा| इसलिए मुझे आप इसी वर को दीजिए|”

यमराज ने यहां तक कहा कि तुम तो मुझको इस तरह दबा रहे हो, जैसे कोई महाजन ऋण लेने वाले को दबाता है| फिर यमराज ने उसको संसार तथा स्वर्ग के भोग, यहां तक कि सारी पृथ्वी का राज्य, लम्बी आयु, धन-संपत्ति इत्यादि के प्रलोभन देकर ललचाना चाहा| यह सब उन्होंने नचिकेता कि सच्ची इच्छा तथा जिज्ञासा को जानने के लिए परीक्षा ली थी| नचिकेता इसमें पूरी तरह उत्तीर्ण हुआ तथा किसी प्रकार के भी लोभ-लालच तथा दवाब में नहीं आया|

वह बोला, " आप जैसा अलौकिक, सिद्ध, महाज्ञानी, महात्माओं का सत्संग पाकर कोई मुर्ख ही संसार और स्वर्ग के भागों में फंसेगा| मुझे तो आप मेरे प्रश्न का उत्तर देने कि ही कृपा करें| मैं और कोई दूसरा वर नहीं मांगता| "

यमराज नचिकेता के इस उत्तर से बहुत प्रसन्न हुए| उन्होंने बताया कि उन्होंने तो नचिकेता कि परीक्षा ली थी कि क्या वास्तव में इस कठिन प्रश्न को वह जानना चाहता है| अब उन्होंने प्रश्न का उत्तर दिया जिसका सार निम्नलिखित है –

" प्रत्येक पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तथा  मनुष्य सभी में आत्मा है| यह आत्मा परमात्मा का अंश हैं| शरीर नष्ट होते हैं, आत्मा कभी नष्ट नहीं होती| वह अमर है| मनुष्य जैसे कर्म करता है, उसके अनुसार फल भोगता है तथा आगे जन्म लेता है और सुख-दुःख के चक्करों में फंसा रहता है| "

" रास्ते दो हैं एक श्रेय मार्ग और दूसरा प्रेय मार्ग| जो संसार के भोगों में फंसा हैं अर्थात जितना हमें अपने लिए तथा अपने परिवार के लिए आवश्यकता है उससे अधिक बटोरने में, इकठ्ठा करने में लगा हे, बिना इस बात की चिंता किए कि दूसरों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है वह प्रेय मार्ग पर चल रहा है| वह हमेशा सुख-दुःख तथा मरने तथा पुनः पैदा होने के चक्कर में फंसा रहेगा, लेकिन जो अच्छे कर्म करता है, दूसरों के हित में लगा रहता है, किसी को कभी कोई कष्ट नहीं देता, अपने माता-पिता, गुरु कि आज्ञापालन तथा सेवा में लगा हैं, ज्ञान कि प्राप्ति में व्यस्त हैं तथा भगवन का भजन-पूजन करता है, अच्छे गुणों को अपनाता है, दुर्गुणों से बचता है, विद्वानों तथा अच्छे आचरण वाले लोगों में बैठता है, वह श्रेय मार्ग का पथिक है| वह संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है तथा अपनी आत्मा के कल्याण के लिए सभी अच्छे गुणों को अपनाता, अच्छे कर्मों को करता हैं| "

नचिकेता यमराज के उत्तर से पूर्ण संतुष्ट हो गया और अत्यंत ज्ञानवान तथा विकार रहित होकर अपने पिता उद्दालक ऋषि के पास वापस चला आया|

तमेव विद्वान न विभाय मृत्यों:
(अथर्ववेद- 10/8/44)

"उस आत्मा को जान लेने पर मनुष्य मृत्यु से नहीं डरता|"

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