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Happy Raksha Bandhan 2020 |
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं | Happy Raksha Bandhan 2020 : Raksha Bandhan Quotes Wishes Greeting Images Download for Whatsapp Status
Raksha Bandhan 2020: दोस्तों इस वर्ष यानि २०२० में रक्षाबंधन का त्यौहार 3 अगस्त, को मनाया जायेगा| रक्षाबंधन का त्यौहार सम्पूर्ण भारत में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है| इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती है| रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते को दिखता है| रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम का प्रतिक है| रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाईयों की तरक्की के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है| हिन्दू धर्म में रक्षाबंधन के त्यौहार की विशेष महत्व है| तो चलिए जानते है की २०२० में रक्षाबंधन का पर्व कब मनाया जायेगा, इसका शुभ मुहूर्त क्या है और इसके बाद हम रक्षाबंधन से सम्बंधित कहानियां भी भी देखेंगे|
रक्षा बंधन का त्यौहार
रक्षाबंधन का त्यौहार बहन और भाई के अटूट रिश्ते को दर्शाता है| इस दिन सभी बहने अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र के लिए भगवन से प्रार्थना करती हैं| और भाई अपनी बहन को हर प्रकार की परेशानियों से रक्षा करने का वचन देते है|
रक्षा बंधन में मूलतः दो भावनाएं काम करती रही हैं| प्रथम, जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बांधते हैं, उसके कल्याण की कामना और दूसरे रक्षा बंधन करने वाली की, उनके प्रति स्नेह भावना| इस प्रकार रक्षा बंधन वास्तव में स्नेह, अपनत्त्व, शांति और रक्षा का बंध है|
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Happy Raksha Bandhan 2020 |
रक्षा बंधन में मूलतः दो भावनाएं काम करती रही हैं| प्रथम, जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बांधते हैं, उसके कल्याण की कामना और दूसरे रक्षा बंधन करने वाली की, उनके प्रति स्नेह भावना| इस प्रकार रक्षा बंधन वास्तव में स्नेह, अपनत्त्व, शांति और रक्षा का बंध है|
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वैसे तो रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के अटूट रिश्ते को दर्शाने के लिए मशहूर है परन्तु इस दिन महिलाऐं सीमा पर तैनात जवानो को भी राखी भेजती हैं क्योंकि जवान सीना पर तैनात होकर हमारे देश की रक्षा करते हैं| इसके अलावा यह त्यौहार सार्वजनिक रूप से भी मनाया जाता है जहाँ महिलायें प्रधानमंत्री, सरकारी अफसर, पुलिस, नेता आदि को भी राखी बांधती हैं| इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व श्रवण मास की पूर्णिमा यानि 3 अगस्त को मनाया जाएगा|
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2020 में कब मनाया जायेगा रक्षाबंधन का पर्व
Raksha Bandhan 2020: इस वर्ष रक्षाबंधन का पर्व ३ अगस्त, सोमवार के दिन मनाया जाएगा| रक्षाबंधन का त्यौहार श्रवण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इस वर्ष श्रवण माह की पूर्णिमा ३ अगस्त को है, इसलिए इस वर्ष रक्षाबंधन ३ अगस्त को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाएगा|
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कैसे मनाये रक्षाबंधन का त्यौहार
इस दिन महिलायें अपने भाइयों को राखी बांधने के लिए पूजा की थाली सजाते है| थाली में राखी, रोली या हल्दी, चावल, मिठाई, पानी आदि होता है| बहनें अपने भाइयों को रोली और चावल का टीका करती है और फिर भाई की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं|
इसके बाद बहने अपने भाइयों को मिठाई खिलाती है और पानी पिलाती है| फिर बहने भगवन से अपने भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं| इसके बाद भाई अपनी बहनों को उनकी रक्षा करने का वचन देते है और उन्हें उपहार भी देते हैं|
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रक्षाबंधन से सम्बंधित पौराणिक रोचक कथाएं
पर्व के रूप में रक्षा बंधन कब से मनाया जाने लगा, इसके बारे में ठीक-ठीक कुछ कहना कठिन है| मगर हमारी संस्कृति में इसकी मूल भावना अत्यंत प्राचीन काल से मौजूद रही है|
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पौराणिक कथाओं में ऐसा बताया गया है की भगवान विष्णु जी के वामनावतार ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने के पश्चात ही उन्हें पटल जाने की आज्ञा दी थी| आज भी ऐसा देखा जाता है की रक्षा बंधन के समय इसी मंत्र को पढ़ा जाता है|
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येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः |
तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल ||
अर्थात तह वही रक्षा सूत्र है, जिससे महाबलवान राक्षसों के राजा बलि बांधे गए| रक्षा सूत्र, तुम चल-विचल मत हो, प्रतिष्ठित बने रहो|
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रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा
प्राचीन भारत में ऋषि सामान्यतः श्रावण के कार्तिक तक के चार महीनों में भ्रमण नहीं किया करते थे| इस अवधि में वे किसी एक ही स्थान पर रुक कर प्रवचन, यज्ञ आदि किया करते थे|
यज्ञ में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों के हाथों में अक्सर चिन्ह के रूप में यज्ञ सूत्र बांध दिया जाता था| यही यज्ञ सूत्र आगे चलकर रक्षा सूत्र के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा| रक्षा सूत्र का अर्थ है रक्षा की व्यवस्था| जिस व्यक्ति के रक्षा सूत्र बंध जाता है, उसकी रक्षा की भावना ही रक्षा सूत्र में निहित है|
आज भी यज्ञ, कथा और पूजन आदि में रक्षा सूत्र बांधने के प्रथा है| तांत्रिक साधना में भी गुरुजन अपने शिष्यों को भूत-प्रेत आदि के आक्रमण से बचाने के लिए रक्षा सूत्र बांधते हैं|
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यज्ञ में सम्मिलित होने वाले व्यक्तियों के हाथों में अक्सर चिन्ह के रूप में यज्ञ सूत्र बांध दिया जाता था| यही यज्ञ सूत्र आगे चलकर रक्षा सूत्र के रूप में प्रयुक्त किया जाने लगा| रक्षा सूत्र का अर्थ है रक्षा की व्यवस्था| जिस व्यक्ति के रक्षा सूत्र बंध जाता है, उसकी रक्षा की भावना ही रक्षा सूत्र में निहित है|
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आज भी यज्ञ, कथा और पूजन आदि में रक्षा सूत्र बांधने के प्रथा है| तांत्रिक साधना में भी गुरुजन अपने शिष्यों को भूत-प्रेत आदि के आक्रमण से बचाने के लिए रक्षा सूत्र बांधते हैं|
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जब इन्द्राणी ने इंद्रा को रक्षा सूत्र बांधा
महाभारत की एक कथा के अनुसार एक समय देवताओं और राक्षसों में भयानक युद्ध हुआ| जो लंबे समय तक चला| इसमें राक्षस विजयी हो रहे थे| यह आशंका होने लगी कि राक्षस देवताओं से इंद्रलोक छीन लेंगे|
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इस पर इंद्राणी भयभीत होकर देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास पहुंची और उनसे समस्या का समाधान पूछा| गुरु बृहस्पति ने बताया कि श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को इंद्राणी, इंद्र को तिलक लगाए और उनकी दाहिनी भुजा पर वेदज्ञ ऋषियों द्वारा अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बांध दे, इंद्राणी ने ऐसा ही किया और इससे युद्ध का पासा पलटने लगा| देवताओं कि जीत हुई|
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महाभारत में श्री कृष्ण और द्रौपदी का रक्षाबंधन
महाभारत में श्री कृष्णा और द्रौपदी के रक्षाबंधन से सम्बंधित भी एक कथा मिलती है| इस कथा के अनुसार जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ करा रहे थे तो उन्होंने अनेक राजाओं को बुलाया था|
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उस राजसूय के दौरान शिशुपाल भी वहाँ उपस्थित थे| राजसभा में शिशुपाल ने श्री कृष्ण का अपमान शुरू कर दिया तो श्री कृष्णा ने शिशुपाल का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया| जब सुदर्शन चक्र शिशुपाल का वध करने के बाद श्री कृष्णा के पास लौटकर आया तो उससे श्री कृष्णा की ऊँगली काट गई और ऊँगली से रक्त बहने लगा|
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यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़कर भगवान श्री कृष्णा की ऊँगली पर बांध दिया जिससे रक्त बहना बंद हो गया| भगवान श्री कृष्णा ने द्रौपदी को वचन दिया की समय आने पर वे इसका ऋण चूका देंगे| कौरवों द्वारा द्रौपदी के चीर हरण के समय भगवान श्री कृष्णा ने अपना वचन निभाया|
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राष्ट्रीय आंदोलन में रक्षा बंधन का योगदान
हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में भी रक्षा बंधन का विशेष योगदान रहा है| 1905 में जब अंग्रेजी सरकार ने बंगाल का विभाजन करके उसकी बढ़ती हुई राष्ट्रीयता को रोकने का प्रयत्न किया था तो दोनों क्षेत्रों की जनता ने आपस में एक दूसरे के राखी बांधकर, अपनी एकता की दृढ़ भावना को व्यक्त किया था| स्वदेशी आंदोलन के समय भी सबको विदेशी सूत्र की राखी का आह्वान किया गया था|
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