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Sri Krishna Janmastmi 2020 Special: श्री कृष्णा जन्म कथा |
Sri Krishna Janmastmi 2020 Special Part 1: श्री कृष्णा जन्म कथा
Sri Krishna Janmastmi 2020 Special Part 1: नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम श्री कृष्णा के जन्म की कथा को पढ़ेंगे| श्री कृष्ण का जन्मदिवस अर्थात कृष्ण जन्माष्टमी प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है| इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था| इस वर्ष श्री कृष्णा जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाएगी| दोस्तों चलिए पढ़ते है भगवान श्री कृष्णा जन्म की कहानी को..
कंस की क्रूरता
कंस ने अपनी बहन देवकी की पहली संतान की क्रूरता से हत्या कर दी थी| जो कंस ने किया था, उसे सुनकर मथुरावासी घबराए हुए थे| यह मथुरावासियों के लिए अत्यंत दुखद समय था| वे अपने भाग्य को धिक्कार रहे थे कि उन्हें ऐसे दुष्ट राजा के राज्य में रहना पद रहा था एवं उसके क्रूरतापूर्ण कार्यों को सहन करना पड़ रहा था| मंत्रियों एवं दरबारियों में जो भी संवेदनशील अच्छे लोग थे, उनका सर लज्जा से झुक गया था| लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्हें ऐसी विचित्र बातों में आनंद आता था और वे खुश होते थे|
कंस में उन्हें उनका नायक दिखाई देता था! अच्छे काम बहुत से लोगों को अच्छाई कि प्रेरणा देते हैं, बुरे काम कुछ लोगों को बुराई को बढ़ावा देते हैं| और जब इस प्रकार के अच्छे और बुरे कर्म कोई राजा या नेता करता है तो उसका प्रभाव सदा ही बहुत दूर तक फैलता है|
जिस प्रकार यदि वातावरण में गुनगुनी धूप हो, शीतल पवन चले, चारों ओर पुष्पों की सुगंध फैली हो तो यह सब न देख पाने के बाद भी हम भीतर से आनंद का अनुभव करते हैं| परन्तु यदि वातावरण चिपचिपा और दुर्गन्ध युक्त हो तो कोई भी व्यक्ति उदास हो जाता है| उसी प्रकार से यदि वातावरण में सद्भावना, दया, विश्वास हो, लोगों में सद्गुण हों तो समृद्धि होती है| जब क्रूरता और अमानवीयता इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि इनका मुकाबला नहीं किया जा सके, तब दुष्टों को लगने लगता है कि वे कुछ भी बुरा कर सकते हैं और इसका उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला|
कंस द्वारा देवकी के नन्हे शिशु की हत्या ने न केवल मथुरा के वातावरण को दूषित किया, बल्कि पडोसी राज्यों पर भी असर डाला| दूसरे राजा कंस से बहुत प्रभावित हुए, उन्हें लगा कठोर से कठोर होना व दुष्ट होना ही एक महान राजा की पहचान है|
कंस भय में क्यों रहता था?
जो भी हो , कंस की मृत्यु की भविष्यवाणी से एक अच्छा नतीजा यह निकला कि वह हर समय अपने भाग्य को सोच-सोच कर डरा हुआ रहता था| एक अजन्मे रहस्मय शिशु के भय ने उसकी हिम्मत तोड़ दी थी और वह अपनी निर्दोष प्रजा पर अत्याचार एवं साधुओं का अपमान करने से डरने लगा था|
देवकी और वसुदेव कारागार में ही रह रहे थे| वसुदेव को थोड़ा-बहुत घूमने फिरने कि स्वतंत्रता थी, लेकिन देवकी को बिल्कुल भी नहीं थी| कंस ने अपनी क्रूरता जारी राखी| साल-दर-साल, एक के बाद एक कंस उनके बच्चे कि हत्या करता रहा| यह अशुभ कार्य एक तरह कि रस्म बन चुका था| कंस देवकी की गोद से बच्चे को छीन लेता, तुरंत आँगन में आता, बच्चे को पैरों से पकड़ कर बहुत ऊँचा उठाकर नीचे पत्थर की शिला पर पटक देता|
यह दृश्य इतना भयावह होता कि बहुत से बंदी इसे न देखने के लिए उस स्थान से दूर चले जाते थे| परन्तु फिर भी कंस के पास अपने प्रशंसकों कि कमी नहीं थी, जो उसका उत्साह बढ़ाते रहते थे|
वसुदेव और देवकी की सातवीं संतान
देवकी अब अपनी सातवीं संतान को जन्म देने वाली थी| पति पत्नी को स्वप्न द्वारा पता चला कि यह कोई महान आत्मा जन्म लेने वाली है| देवकी सदा की तरह अपने शिशु को भी कंस के क्रोध से बचाने के लिए चिंता में थी| परन्तु कौन ऐसा था जो उसके इस कार्य में सहायता करता? उसकी मार्मिक प्रार्थनाएँ ऊपर देवी माँ तक पहुँची|
वसुदेव ने देवकी से इसलिए विवाह किया था क्योंकि उनकी पहली पत्नी (रोहिणी) निःसंतान थी| रोहिणी भी दिन रात देव माँ से प्रार्थना करती| रोहिणी की संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना और देवकी की संतान के सुरक्षा के लिए प्रार्थना जैसे एक ही समय पर स्वीकार कर ली गई हो|
देवी महामाया का चमत्कार
देवी महामाया ने चमत्कार दिखाया- प्रकाशपुंज के रूप में उनका एक स्वरुप नीचे आया और उसने देवकी के गर्भ से उस शिशु को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया- बाद में यह बालक बलराम के नाम से जाना गया- जिसका पालन पोषण नंद के घर में सुरक्षित रूप से हो रहा था| नंद यमुना के पार गोपा गाँव में रहते थे| वे ग्वाल जाति के मुखिया और वसुदेव के प्रिय मित्र थे|
देवकी की देखभाल करने वाली दसियों ने कंस को सूचना दी कि देवकी का यह शिशु गर्भ में ही मर गया है| कंस ने पूछताछ करवाई और सूचना को सही पाया|
वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान
एक वर्ष या उसके बाद दसियों ने कंस को देवकी के पुनः गर्भवती होने की सूचना दी| इस सूचना ने उसे डरा दिया, क्योंकि अब देवकी की आठवीं संतान और कंस का काल पैदा होने ही वाला था|उसी समय एक तसल्ली भी थी की अब इस शिशु को समाप्त कर देने के बाद वह साडी चिंताओं से मुक्त हो जाएगा|
जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे उसका तनाव बढ़ता जा रहा था| दासियाँ प्रतिदिन की सूचना आकर दे रही थी| जैसे ही सूचना मिली कि शिशु का जन्म एक-दो दिनों के भीतर कभी भी हो सकता है, कंस आतंक से भर गया, बुरी तरह भय से काँपने लगा| वह देवकी के कक्ष के बाहर बरामदे में बार-बार आता, ताकि बच्चे के रोने कि आवाज सुन सके|
उसने पुराने तैनात सभी पहरेदारों को हटा दिया और दैत्यों को पहरेदारों की तरह तैनात कर दिया- जिन पर अधिक भरोसा करता था| वसुदेव और देवकी पर से दैत्यों की निगरानी क्षण भर के लिए भी नहीं हटती थी|
दिव्या बालक का जन्म
उस दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी थी| संध्या का समय था, कंस बरामदे में इधर-से-उधर घूम रहा था कि तभी एक दासी ने आकर उस सूचना दी, "स्वामी, राजकुमारी आज रात्रि में ही शिशु कि जन्म दे सकती है?""अच्छा ! ऐसी बात ?" पूछते हुए कंस ने दासी को ऊपर से नीचे तक देखा| एकाएक देवकी कि सेवा में लगी सभी दसियों के प्रति उसे शंका होने लगी, "कौन जाने इनमें किसी को देवकी ने अपनी ओर मिला लिया हो?"
"कोई भी दासी आज की रात देवकी की सेवा में नहीं रहेगी !" कंस ने आदेश दिया| उसने चुपके से देवकी कक्ष में यह निश्चित करने के लिए झाँका कि वहाँ वसुदेव के आलावा कोई भी न हो| उसने दैत्य प्रहरियों को आदेश दिया कि जैसे ही वे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनें, तुरंत उसके शयन कक्ष में आकर उसे जगा दें|
उस दिन मथुरा में वह भयानक काली रात थी| पर्वतों के सामने तैरते हुए दैत्याकार बादल पूरे आसमान को ढके हुए थे| एक छोटे से तारे का प्रकाश भी धरती पर नहीं आ रहा था| हजारों सियारों की हूक और सीटियों की चीख के जैसी शोर करती हुई तेज आँधी कंस के महल में प्रवेश कर गई|
देवकी एवं वसुदेव अपने कक्ष में अत्यधिक कष्ट में थे| दीए की टिमटिमाहट में दिखाई दें रहा था कि असहनीय पीड़ा से देवकी का चेहरा पीला पड़ रहा था| वसुदेव उसके बिछौने के चारों ओर असहाय एवं दुखी होकर इधर-से-उधर घूम रहे थे|
"यदि विधाता अपनी इच्छापूर्ण करने का दायित्व मेरी संतान को सौंपना चाहते हैं, तो कठिन परिस्थिति से माँ भगवती को ही पार लगाना होगा| उन्हें हमारी रक्षा के लिए आना ही होगा," हाथ जोड़कर हृदय से प्रार्थना करते हुए देवकी ने कहा|
इतने में जोरदार आँधी चली और सारे दीए बुझ गए| वह रात का सबसे अंधकार भरा प्रहर था| वसुदेव आंख मूँद कर प्रार्थना करने लगे| अगले ही क्षण उन्हें आभास हुआ कि जैसे तेज परन्तु शीतल ज्वाला से सारे कक्ष में उजाला हो गया है| उन्होंने आंखे खोली तो पाया कि यह सच है, एक सुनहरे नील रंग के प्रकाश ने कक्ष के सारे अंधकार को समाप्त कर दिया है|
जल्दी ही एक भव्य-सी आकृति उस आभा में उभरी| वसुदेव को उसमें देवी महामाया की झलक दिखाई पड़ी| "अपना पुत्र उठाओ !" देवी ने कहा |
"पुत्र !" वसुदेव ने अचंभे से पीछे देखा| देवकी अपनी शय्या पर लगभग बेहोश-सी लेती थी और उनके पास लेता हुआ था उसका आठवां पुत्र- वह इतना सुंदर था, उसमें इतना चुंबकीय आकर्षण था कि उसका बखान कर पाना असंभव था| "इसे तुरंत नंद के घर ले जाओ | उसकी पत्नी यशोदा ने अभी-अभी एक पुत्री को जन्म दिया है| अपने पुत्र को वहाँ रखकर उसकी पुत्री को लेकर वापस आ जाओ," देवी ने कहा|
वसुदेव ने उस शिशु को उठाया और अपनी काँपती हुई बाहों में थाम लिया| वसुदेव परमानंद में थे| उस बालक का मुख इतना प्यारा था कि कोई चित्रकार उससे सुंदर चित्र कभी नहीं बना पता| वसुदेव मोहित होकर बस उस बालक को देखे जा रहे थे|
टूटे सरे द्वार जब प्रकट हुए कृष्ण अवतार
"परन्तु, माँ..." उन्होंने कंस के कारागार से बाहर निकल पाने में आशंका जताई|
"चिंता मत करो, सारे पहरेदार, महल के सारे निवासी, सारे बंदी और यहाँ तक कि मथुरा की सारी प्रजा, सभी अचेत होकर निद्रा में डूबे हुए हैं| मेरे चमत्कार से यह सब हुआ| तुम निडर होकर आगे बढ़ो !" देवी महामाया ने कहा|
शिशु को छाती से लगाकर वसुदेव ने झुककर देवी महामाया को प्रणाम किया और द्वारों की ओर देखा जिनमें ताले बंद थे|
एकाएक सारे द्वार खुलकर हवा में लहराने लगे|
श्री कृष्ण भजन: 11+ Beautiful Sri Krishna Bhajan Lyrics in Hindi
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